अर्थमंत्री
इंदिरा गांधीजी ने २६ जून १९७० में यशवंतरावजी पर अर्थ विभाग सौंप दिया । उन्होंने जब वित्तमंत्री का कार्यभार स्वीकार लिया तब वह काल देश की आर्थिक दृष्टिसे बहुत कठिन था ।
अर्थव्यवस्था बिखरी हुई थी । अनेक बातों का अभाव था । अर्थसाधन अपर्याप्त थे । जीवनावश्यक वस्तुओं की कमी, कीमतों में वृद्धि आदि प्रश्नों के कारण दिक्कते पैदा हो गयी थी । सुशिक्षित बेरोजगारी, ग्रामीण बेकारी, जमीनसुधार ऐसे असंख्य प्रश्न थे । इसके सिवाय पूर्व पाकिस्तान से भारत में आने वाले निर्वासितों के गिरोह रोकने के लिए आंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंदिरा गांधीजी द्वारा किये गये प्रयत्न असफल हो गये थे । फिर भारत-पाकिस्तान संघर्ष अटल था । बांगला देश की निर्मिति, मध्यपूर्व में सुलगा हुआ अरब-इस्त्रायली संघर्ष, तेल की बढी हुई कीमतें आदि सब प्रतिकूल घटनाओं से भारत के आर्थिक व्यवस्था पर प्रचंड बोझ पडा हुआ था । केंद्रीय वित्तमंत्री यशवंतरावजी को इन सब बातों का सामना करना पड रहा था ।
उसके साथ ही देशांतर्गत मूल्य वृद्धि पर नियंत्रण रखना आवश्यक था । राजनैतिक दृष्टि से यह बहुत कठिन काम था । यशवंतरावजी कोई अर्थतज्ज्ञ नहीं थे । परंतु अपने ऊपर सौंपी हुई कोई भी जिम्मेदारी प्रयत्न कर के खबरदारी से पार करने की उनकी वृत्ति से और अनेक तनाव खिंचाव का समन्वय करने की कुशलता से वित्तमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल संस्मरणीय हो गया ।
उस काल में उन्होंने अपनी कल्पना में होनेवाली अर्थविषयक नीति का हमेशा समर्थन किया । राष्ट्र का विकास बनाने में उनका बहुत बडा उपयोग हुआ । उन्होंने अर्थ विभाग में आमूलाग्र बदल किये । तत्परता से अच्छी तरह कारोबार किया । बैंकों का राष्ट्रीयीकरण, संस्थानिकों के तनखे बंद करना आदि विषयों का सर्वांगीण अभ्यास करके उन्होंने निर्णय लिया, ये निर्णय कार्यान्वित किये । अर्थमंत्री के रूप में उनके द्वारा लिये हुए निर्णय देश की अर्थव्यवस्था पर दीर्घकाल परिणाम करनेवाले शाबित हुए ।
विदेश मंत्री
११ अक्तूबर १९७४ में इंदिराजी ने यशवंतरावजी पर विदेश मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी । इसलिए वे अनेक देशों से भेंट देने के लिए गये थे । इसलिए अनेक विदेश राष्ट्रप्रमुखोंसे, कुटनीतिज्ञोंसे भेंट देकर भारत के विदेश संबंधविषयक चर्चा करनी पडी । उन्होंने अलिप्तता की नीति का समर्थन किया । भारत-अमरिका, भारत-रशिया, भारत-पाकिस्तान, भारत-चीन इन सब में राजनैतिक संबंध सुधार के लिये उन्होंने सतत प्रयत्न किये । उन्होंने विदेश विभाग कुशलता से संभाला । उन्होंने भारत को प्रतिष्ठा प्राप्त कर दी । विभिन्न राष्ट्रों के विकास के कार्यक्रम जो अंमल में लाये है, उन्होंने उसका प्रत्यक्ष अवलोकन किया । आंतरराष्ट्रीय राजनीति का गहरा अभ्यास, विविधतासे भरे विस्तृत अनुभव और विविध राष्ट्रप्रमुखों से उन्होंने जोडे हुए संबंधों के कारण आंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में यशवंतरावजी का प्रभाव महसूस हो रहा था । १९७१ में विदेश मंत्री होनेपर पाकिस्तान से युद्ध हुआ । भारत का संरक्षण का हक सिद्ध करने के लिए यशवंतरावजी ने दौरा किया । उसके बाद वे रशिया के दौरे पर गये और संरक्षण समझौता किया । नेहरू-इंदिराप्रणीत विदेश नीति आगे रख दी।



















































































































